सूरत, 2 मई 2025: जामिया में तकरीबन 70 साल तक तालीमी खिदमत अंजाम देने वाले बुज़ुर्ग शिक्षक शेख यासीन अली सलाम का 1 मई की रात 12:15 बजे सूरत में इंतकाल हो गया। वे कुछ समय से बीमार चल रहे थे। उनके इंतकाल से तालीमी और अदबी हल्कों में ग़म की लहर दौड़ गई है।
शेख यासीन अली सलाम न सिर्फ वक्त के पाबंद और डिसिप्लिन पसंद थे, बल्कि उनका अंदाज़-ए-तालीम भी बेहद दिलकश और असरदार था। जब भी किसी छात्र से कोई गलती होती, तो वे डांटने के बजाय शेरो-शायरी के अंदाज़ में समझाते, जिससे छात्र न सिर्फ मुतास्सिर होते बल्कि पढ़ाई में भी दिलचस्पी लेने लगते।
उनका अंदाज़-ए-बयान इतना निराला था कि हर सुनने वाला उनका दीवाना हो जाता। उन्होंने सैयदना बुरहानुद्दीन साहब की शान में मदहे और इमाम हुसैन के ग़म में मरसिए भी लिखे, जो आज भी अदब की दुनिया में मक़बूल हैं।
सैयदना बुरहानुद्दीन साहब की उन पर ख़ास नजर इनायत रही, उन्हेने सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन साहब की खिदमत में अपने जीवन का आखरी दशक निर्वह किया, और वे हमेशा अपनी खिदमत से उनका एतबार जीतते रहे।
शेख यासीन अली सलाम की दिली ख्वाहिश थी कि उन्हें उनके वतन शाजापुर में दफन किया जाए। उनकी इस ख्वाहिश का एहतराम करते हुए, 2 मई को शाम 4 बजे के करीब उन्हें शाजापुर की दरगाह यूसुफिया के कब्रिस्तान में आख़िरी सलामी दी गई और सुपुर्द-ए-ख़ाक किया गया।
उनकी वफात से जामिया और पूरे तालीमी समाज ने एक ऐसा सितारा खो दिया है जिसकी कमी लंबे अरसे तक महसूस की जाएगी